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Thursday, 26 January 2012

अजमेर की दरगाह शरीफ


दरगाह अजमेर शरीफ...एक ऐसा पाक-शफ्फाक नाम है जिसे सुनने मात्र से ही रूहानी सुकून मिलता है। अजमेर शरीफ में हजरत ख्वाजा मोईनुद्‍दीन चिश्ती रहमतुल्ला अलैह की मजार की जियारत कर दरूर-ओ-फातेहा पढ़ने की चाहत हर ख्वाजा के चाहने वाले की होती है, लेकिन हर कोई उनके द्वार पर दस्तक नहीं दे पाता ऐसे सभी श्रद्धालुओं के लिए धर्मयात्रा में हमारी यह प्रस्तुति खास तोहफा है।

फोटो गैलरी देखने के लिए क्लिक करें-

दरगाह अजमेर शरीफ का भारत में बड़ा महत्व है। खास बात यह भी है कि ख्वाजा पर हर धर्म के लोगों का विश्वास है। यहाँ आने वाले जायरीन चाहे वे किसी भी मजहब के क्यों न हों, ख्वाजा के दर पर दस्तक देने के बाद उनके जहन में सिर्फ अकीदा ही बाकी रहता हैदरगाह अजमेर डॉट काम चलाने वाले हमीद साहब कहते हैं कि गरीब नवाज का का आकर्षण ही कुछ ऐसा है कि लोग यहाँ खिंचे चले आते हैं। यहाँ आकर लोगों को रूहानी सुकून मिलता है।




भारत में इस्लाम के साथ ही सूफी मत की शुरुआत हुई थी। सूफी संत एक ईश्वरवाद पर विश्वास रखते थे...ये सभी धार्मिक आडंबरों से ऊपर अल्लाह को अपना सब कुछ समर्पित कर देते थे। ये धार्मिक सहिष्णुता, उदारवाद, प्रेम और भाईचारे पर बल देते थे। इन्हीं में से एक थे हजरत ख्वाजा मोईनुद्‍दीन चिश्ती रहमतुल्ला अलैह।

ख्वाजा साहब का जन्म ईरान में हुआ था अपने जीवन के कुछ पड़ाव वहाँ बिताने के बाद वे हिन्दुस्तान आ गए। एक बार बादशाह अकबर ने इनकी दरगाह पर पुत्र प्राप्ति के लिए मन्नत माँगी थी। ख्वाजा साहब की दुआ से बादशाह अकबर को पुत्र की प्राप्ति हुई। खुशी के इस मौके पर ख्वाजा साहब का शुक्रिया अदा करने के लिए अकबर बादशाह ने आमेर से अजमेर शरीफ तक पैदल ख्वाजा के दर पर दस्तक दी थी...

तारागढ़ पहाड़ी की तलहटी में स्थित दरगाह शरीफ वास्तुकला की दृष्टि से भी बेजोड़ है...यहाँ ईरानी और हिन्दुस्तानी वास्तुकला का सुंदर संगम दिखता है। दरगाह का प्रवेश द्वार और गुंबद बेहद खूबसूरत है। इसका कुछ भाग अकबर ने तो कुछ जहाँगीर ने पूरा करवाया था। माना जाता है कि दरगाह को पक्का करवाने का काम माण्डू के सुल्तान ग्यासुद्दीन खिलजी ने करवाया था। दरगाह के अंदर बेहतरीन नक्काशी किया हुआ एक चाँदी का कटघरा है। इस कटघरे के अंदर ख्वाजा साहब की मजार है। यह कटघरा जयपुर के महाराजा राजा जयसिंह ने बनवाया था। दरगाह में एक खूबसूरत महफिल खाना भी है, जहाँ कव्वाल ख्वाजा की शान में कव्वाली गाते हैं। दरगाह के आस-पास कई अन्य ऐतिहासिक इमारतें भी स्थित हैं।

धार्मिसद्‍भाव की मिसाल- धर्म के नाम पर नफरत फैलाने वाले लोगों को गरीब नवाज की दरगाह से सबक लेना चाहिए...ख्वाजा के दर पर हिन्दू हों या मुस्लिम या किसी अन्य धर्म को मानने वाले, सभी जियारत करने आते हैं। यहाँ का मुख्य पर्व उर्स कहलाता है जो इस्लाम कैलेंडर के रजब माह की पहली से छठी तारीख तक मनाया जाता है। उर्स की शुरुआत बाबा की मजार पर हिन्दू परिवार द्वारा चादर चढ़ाने के बाद ही होती है




देग का इतिहास- दरगाह के बरामदे में दो बड़ी देग रखी हुई हैं...इन देगों को बादशाह अकबर और जहाँगीर ने चढ़ाया था। तब से लेकर आज तक इन देगों में काजू, बादाम, पिस्ता, इलायची, केसर के साथ चावल पकाया जाता है और गरीबों में बाँटा जाता है।

कैसे जाएँ- दरगाह अजमेर शरीफ राजस्थान के अजमेर शहर में स्थित है। यह शहर सड़क, रेल, वायु परिवहन द्वारा शेष देश से जुड़ा हुआ है। यदि आप विदेश में रहते हैं या फिर यहाँ से जुड़ी ज्यादा जानकारी चाहते हैं तो दरगाह अजमेर डॉट कॉम या राजस्थान पर्यटन विभाग से संपर्क कर सकते हैं।

गणतंत्र दिवस पर भारत ने दिखाई सैन्य ताकत

Webdunia

भारत की राजधानी दिल्ली के राजपथ पर गणतंत्र दिवस की परेड के दौरान भारतीय सेना ने अपनी ताकत दिखाई। भारत की पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने तिरंगा फहराया और वे परेड की सलामी ले रही हैं। जहां पूरा राजपथ तिरंगे के रंग में रंग गया है वहीं सैन्य परेड और संस्कृतिक विविधता की ताकत को देखने के लिए थाइलैंड की प्रधानमंत्री मौजूद हैं

*63वें गणतंत्र दिवस का रंगारंग समारोह
*1950 को लागू हुआ था भारत का संविधा
*थलसेना और वायुसेना की तैनाती
*मुख्य अतिथि थाइलैंड की प्रधानमंत्री

*इस वर्ष गणतंत्र दिवस समारोह की मुख्य अतिथि थाईलैंड की पहली महिला प्रधानमंत्री यिंगलक शिनवात्रा हैं।
*शहीद ले. जनरल नवदीप सिंह को मरणोपरांत अशोक चक्र दिया गया। नवदीप सिंह कश्मीर में आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे।

राज्यों की रंगारंग झांकियां : राजपथ से ऐतिहासिक लालकिल तक गुरुवार को निकली परंपरागत गणतंत्र दिवस परेड के दौरान विभिन्न झांकियों के जरिए दुनिया की सबसे अधिक सांस्कृतिक विविधता वाले देश भारत की संस्कृति, कला, संगीत, नृत्य और त्योहारों आदि का अद्भुत संगम देखने को मिला।

बिहार की झांकी में धरहारा परंपरा के माध्यम से परिवार में बेटियों के महत्व एवं स्थान को दर्शाया गया। इस परंपरा के तहत किसी परिवार में लड़की पैदा होने पर 10 फलदार वृक्ष लगाने की परंपरा है।

पश्चिम बंगाल की झांकी नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कवि गुरू रवींद्र नाथ टैगोर को समर्पित थी जिसमें उनके द्वारा स्थापित शांति निकेतन को दर्शाया गया। जम्मू-कश्मीर ने श्रीनगर के स्थापत्यकला एवं धरोहर की झांकी पेश की तो छत्तीसगढ़ की झांकी में मिट्टी का काम करने वाले कलाकारों की पारंपरिक जिंझारी और डोंडाकी कला को प्रस्तुत किया गया।

राजपथ से ऐतिहासिक लालकिले तक सड़क के दोनों ओर खचा-खच भरे लोगों ने भारत की सांस्कृतिक विविधता को खूब सराहा। इनमें बड़ी संख्या में विदेशी भी थे। राजपथ पर राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के साथ सलामी मंच पर बैंठी इस वर्ष की गणतंत्र दिवस परेड की खास मेहमान थाइलैंड की प्रधानमंत्री यिंगलक शिनावात्रा ने इन झांकियों में काफी उत्सुकता दिखाई।

महाराष्ट्र की झांकी में राज्य के ऐतिहासिक स्थलों प्राकृतिक आश्चर्यो, स्मारकों, पर्यटन स्थलों के दृश्यों की झलक देखने को मिली।

समुद्र की गोद में बसे गोवा की झांकी में वहां के लोगों के उल्लास और मस्ती भरी प्रकृति को उकेरती गोवा कार्निवल का प्रदर्शन किया गया। कर्नाटक की झांकी में प्राचीन सांस्कृतिक परंपरा एवं पूजा ‘भूताराधाने’ को साकार किया गया जबकि मेघालय की झांकी में जैंतिया त्योहार को जीवंत किया। राजस्थान की झांकी में अमेर के भव्य किला को दर्शाया गया जबकि असम की झांकी में ‘भोरताल नृत्य’ को प्रस्तुत किया गया। पंजाब की झांकी में शेर ए पंजाब महाराज रंजीत सिंह की महिमा देखने को मिली।

सामुदायिक भावना के लिए संयुक्त राष्ट्र से पुरस्कृत नगालैंड की झांकी में आपसी भाईचारे को दिखाया गया, वहीं किरत खाम्बू राय समुदाय के मनाए जाने वाले साकेवा त्योहार का प्रदर्शन सिक्किम की झांकी के जरिए हुआ।

इसी प्रकार, कपड़ा मंत्रालय की झांकी में हस्तशिल्प, मानव संसाधन विकास मंत्रालय की झांकी में साक्षर भारत, आदिवासी मामलों के मंत्रालय द्वारा आदिवासी सशक्तिकरण, सीपीडल्यूडी की झांकी में बर्फ की घाटी, चुनाव आयोग की झांकी में राष्ट्रीय मतदाता दिवस और वित्त मंत्रालय की झांकी में आर्थिक मोचरे को मजबूत करने के लिए उठाये गए कदमों का प्रदर्शन किया गया।

गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान कृषि मंत्रालय की झांकी में कृषि क्षेत्र के विविधिकरण, इस्पात मंत्रालय की झांकी में इस्पात के राष्ट्र को मजबूत बनाने, संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की झांकी में राष्ट्रीय ई प्रशासन और रेल मंत्रालय की झांकी में पंजाब मेल का प्रदर्शन किया गया।

इस बार की परेड में 23 राज्यों और केन्द्रीय मंत्रालयों एवं विभागों की झाकियां देश की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत से जुड़ी झांकियों का प्रदर्शन किया गया । राष्ट्रीय बहादुरी पुरस्कार 2009 के लिए चुने गए 24 बच्चों में से 19 परेड में हिस्सा लिया।

इस बार की परेड में 23 राज्यों और केन्द्रीय मंत्रालयों एवं विभागों की झांकियों के जरिए देश के विकास और ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत से जुड़े पहलुओं का प्रदर्शन किया गया। राष्ट्रीय बहादुरी पुरस्कार 2009 के लिए चुने गए 24 बच्चों में से 19 परेड में हिस्सा लिया। दिल्ली के दो स्कूलों के 1200 छात्र-छात्राओं और विभिन्न सांस्कृतिक केन्द्रों के कलाकारों ने रंगारंग प्रस्तुतियां दी जबकि बीएसएफ के 154 जवान 30 मोटरसाइकिलों पर हैरतअंगेज करतब दिखाए।

सैन्य परेड : परेड के दौरान देश के रक्षा विकास एवं अनुसंधशन संगठन द्वारा विकसित 3000 किलोमीटर तक मार करने वाली अग्नि-4 मिसाइल, 150 किलोमीटर तक मार करने वाली ‘प्रहार’ मिसाइल और मानवरहित विमान ‘रूस्तम-1’ को दर्शाया गया। ध्वजारोहण के तुरंत बाद 21 तोपों की सलामी के बीच गजराज की तरह आसमान से मंडराते एमआई 17 हेलीकॉप्टरों ने गुलाब की पंखुरियां बिखेरी तो राजपथ पर बैठे सैकड़ों दर्शक मंत्रमुग्ध हुए बिना नहीं रह सके।

भारतीय सेना टी-72 टैंक, बहुप्रक्षेपण राकेट प्रणाली, पिनाका मल्टी बैरल राकेट प्रणाली और जैमर स्टेशन वीएचएफ (यूएचएफ) का भी प्रदर्शन किया गया। सेना के उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर ‘ध्रुव’ ने आकाश में स्वदेशी तकनीकी क्षमता की पताका फहराई। भारतीय वायुसेना ने पहली बार सी-130-जे सुपर हरक्यूलिस विमान का प्रदर्शन किया।

परेड के दौरान परमाणु जैविक रासायनिक शुद्धिकरण प्रणाली के अलावा जैमर स्टेशन का भी प्रदर्शन किया गया। परेड में सेना की 61वीं कैवेलरी, पैराशूट रेजीमेंट, बंगाल इंजीनियर ग्रुप, ब्रिगेड आफ गार्डस, कुमाउं रेजीमेंट, असम रेजीमेंट, महार रेजीमेंट, गोरखा राइफल्स रेजीमेंट और कोर आफ मिल्रिटी पुलिस के जवान शामिल थे।

नौसेना के दस्ते में लेफ्टिनेंट मणिकंदन के. के नेतृत्व में 148 जवानों और वायुसेना के दस्ते में फ्लाइट लेफ्टिनेंट स्नेहा शेखावटे के नेतृत्व में 144 अन्य जवानों ने राष्ट्रपति को सलामी दी। इंस्पेक्टर अनिल कुमार की अगुवाई में 30 बाइक पर सवार 154 जवानों का जाबांज प्रदर्शन।

वायुसेना के सी-130-जे सुपर हरक्यूलिस विमान पहली बार परेड में शामिल हुए। परेड के समापन पर फ्लाईपास्ट का नेतृत्व तीन एमआई-35 हेलीकॉप्टरों ने किया। उनके पीछे एक आईएल-78, दो एएन-32 और दो ड्रोनियर ने आकाश में भारत की शक्ति का प्रदर्शन किया।

इसके बाद, पांच जगुआर और पांच मिग-29 लड़ाकू विमानों ने आकाश के सीने को चीरते हुए गणतंत्र का जयघोष किया। एसयू-30 एमकेआई विमान भी फ्लाईपास्ट का हिस्सा बने।

अर्धसैनिक बलों और अन्य असैन्य बलों मसलन सीमा सुरक्षा बल, असम राइफल्स, तटरक्षक बल, केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस, केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, सशस्त्र सीमा बल, रेलवे सुरक्षा बल, दिल्ली पुलिस, राष्ट्रीय कैडेट कोर और राष्ट्रीय सेवा योजना के दस्तों ने भी मार्च पास्ट में हिस्सा लिया।

कड़ी सुरक्षा : चाक चौबंद सुरक्षा व्यवस्था के बीच इस बार की परेड का एक महत्वपूर्ण आकर्षण खोजी कुत्ते थे जिन पर दिल्ली पुलिस का बम निरोधक दस्ता और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड आतंकवादी घटनाओं और अन्य वारदात की जांच में बहुत भरोसा करते हैं। खोजी कुत्तों ने कई तरह की दक्षता का प्रदर्शन किया।

गणतंत्र दिवस समारोह के लिए सुरक्षा के चाक चौबंद प्रबंध किए गए और किसी तरह की अप्रिय घटना से निपटने के लिए अर्ध सैनिक बलों, दिल्ली पुलिस के जवानों के अलावा एनएसजी को तैनात किया गया। ऊंची इमारतों पर अचूक निशानेबाज तैनात थे तो हेलीकॉप्टरों से वायु निगरानी की व्यवस्था करने के साथ क्लोज सर्किट कैमरे लगाए गए। परेड जिस रास्ते से गुजर रही थी उसके आस पास की हर इमारत पर सुरक्षा बल चौकसी बरत रहे थे।

गणतंत्र दिवस समारोह का समापन राष्ट्रगान और आकाश में गुब्बारे छोड़ने के साथ हुआ।

मां सरस्वती की उपासना का पर्व वसंत पंचमी

वसंत

माघ शुक्ल पंचमी को मनाए जाने वाले सारस्वत महोत्सव का महत्व निराला है। मां सरस्वती विद्या, बुद्धि, ज्ञान और वाणी की अधिष्ठात्री देवी हैं तथा शास्त्र ज्ञान को देने वाली है। भगवती शारदा का मूलस्थान अमृतमय प्रकाशपुंज है। जहां से वे अपने उपासकों के लिए निरंतर पचास अक्षरों के रूप में ज्ञानामृत की धारा प्रवाहित करती हैं। उनका विग्रह शुद्ध ज्ञानमय, आनन्दमय है। उनका तेज दिव्य एवं अपरिमेय है और वे ही शब्द ब्रह्म के रूप में पूजी जाती हैं।

सृष्टि काल में ईश्वर की इच्छा से आद्याशक्ति ने अपने को पांच भागों में विभक्त कर लिया था। वे राधा, पद्मा, सावित्री, दुर्गा और सरस्वती के रूप में प्रकट हुई थीं। उस समय श्रीकृष्ण के कण्ठ से उत्पन्न होने वाली देवी का नाम सरस्वती हुआ। श्रीमद्देवीभागवत और श्रीदुर्गा सप्तशती में भी आद्याशक्ति द्वारा अपने आपको तीन भागों में विभक्त करने की कथा है। आद्याशक्ति के ये तीनों रूप महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के नाम से संसार में जाने जाते हैं।

भगवती सरस्वती सत्वगुणसंपन्न हैं। इनके अनेक नाम हैं, जिनमें से वाक्‌, वाणी, गिरा, भाषा, शारदा, वाचा, श्रीश्वरी, वागीश्वरी, ब्राह्मी, गौ, सोमलता, वाग्देवी और वाग्देवता आदि प्रसिद्ध हैं। ब्राह्मणग्रंथों के अनुसार वाग्देवीर ब्रह्मस्वरूपा, कामधेनु, तथा समस्त देवों की प्रतिनिधि हैं। ये ही विद्या, बुद्धि और सरस्वती हैं। इस प्रकार देवी सरस्वती की पूजा एवं आराधना के लिए माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि वसंत पंचमी को ही इनका अवतरण दिवस माना जाता है।

अतः वागीश्वरी जयंती एवं श्री पंचमी के नाम से भी इस तिथि को जाना जाता है। इस दिन इनकी विशेष अर्चा-पूजा तथा व्रतोत्सव के द्वारा इनके सांनिध्य प्राप्ति की साधना की जाती है। सरस्वती देवी की इस वार्षिक पूजा के साथ ही बालकों के अक्षरारंभ एवं विद्यारंभ की तिथियों पर भी सरस्वती पूजन का विधान है।

भगवती सरस्वती की पूजा हेतु आजकल सार्वजनिक पूजा पंडालों की रचना करके उसमें देवी सरस्वती की मूर्ति स्थापित करने एवं पूजन करने का प्रचलन दिखाई पड़ता है, किंतु शास्त्रों में वाग्देवी की आराधना व्यक्तिगत रूप में ही करने का विधान बतलाया गया है।

भगवती सरस्वती के उपासक को माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को प्रातःकाल में भगवती सरस्वती की पूजा करनी चाहिए।
इसके एक दिन पूर्व अर्थात्‌ माघ शुक्ल पूजा करनी चाहिए। इसके एक दिन पूर्व अर्थात्‌ माघ शुक्ल चतुर्थी को वागुपासक संयम, नियम का पालन करें। इसके बाद माघ शुक्ल पंचमी को प्रातःकाल उठकर घट (कलश) की स्थापना करके उसमें वाग्देवी का आह्वान करे तथा विधिपूर्वक देवी सरस्वती की पूजा करें।

पूजन कार्य में स्वयं सक्षम न हो तो किसी ज्ञानी कर्मकांडी या कुलपुरोहित से दिशा-निर्देश से पूजन कार्य संपन्न करें।

मां
भगवती सरस्वती की पूजन प्रक्रिया में सर्वप्रथम आचमन, प्राणयामादि के द्वारा अपनी बाह्यभ्यंतर शुचिता संपन्न करे। फिर सरस्वती पूजन का संकल्प ग्रहण करे। इसमें देशकाल आदि का संकीर्तन करते हुए अंत में 'यथोपलब्धपूजनसामग्रीभिः भगवत्याः सरस्वत्याः पूजनमहं करिष्ये।' पढ़कर संकल्प जल छोड़ दें। तत्पश्चात आदि पूजा करके कलश स्थापित कर उसमें देवी सरस्वती साद आह्वान करके वैदिक या पौराणिक मंत्रों का उच्चारण करते हुए उपचार सामग्रियां भगवती को सादर समर्पित करे।

'श्री ह्यीं सरस्वत्यै स्वाहा' इस अष्टाक्षर मंत्र से प्रन्येक वस्तु क्रमशः श्रीसरस्वती को समर्पण करे। अंत में देवी सरस्वती की आरती करके उनकी स्तुति करे। स्तुति गान के अनन्तर सांगीतिक आराधना भी यथासंभव करके भगवती को निवेदित गंध पुष्प मिष्आत्रादि का प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। पुस्तक और लेखनी में भी देवी सरस्वती का निवास स्थान माना जाता है तथा उसकी पूजा की जाती है।

देवी भागवत एवं ब्रह्मवैवर्तपुराण में वर्णित आख्यान में पूर्वकाल में श्रीमन्नरायण भगवान ने वाल्मीकि को सरस्वती का मंत्र बतलाया था। जिसके जप से उनमें कवित्व शक्ति उत्पन्न हुई थी। भगवान नारायण द्वारा उपदिष्ट वह अष्टाक्षर मंत्र इस प्रकार है- 'श्रीं ह्वीं सरस्वत्यै स्वाहा।' इसका चार लाख जप करने से मंत्र सिद्धि होती है।

आगम ग्रंथों में इनके कई मंत्र निर्दिष्ट हैं, जिनमें 'अं वाग्वादिनि वद वद स्वाहा।' यह सबीज दशाक्षर मंत्र सर्वार्थसिद्धिप्रद तथा सर्वविद्याप्रदायक कहा गया है। ब्रह्मवैवर्तपुराण में उनका एक मंत्र इस प्रकार है- 'ॐ ऐं ह्वीं श्रीं क्लीं सरस्वत्यै बुधजनन्यै स्वाहा।'

ऐसा उल्लेख आता है कि महर्षि व्यास जी की व्रतोपासना से प्रसन्न होकर ये उनसे कहती हैं- व्यास! तुम मेरी प्रेरणा से रचित वाल्मीकि रामायण को पढ़ो, वह मेरी शक्ति के कारण सभी काव्यों का सनातन बीज बन गया है। उसमें श्रीरामचरित के रूप में मैं साक्षात्‌ मूर्तिमती शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित हूं-

पठ रामायणं व्यास काव्यबीजं सनातनम्‌। यत्र रामचरितं स्यात्‌ तदहं तत्र शक्तिमान॥

भगवती सरस्वती के इस अद्भुत विश्वविजय कवच को धारण करके ही व्यास, ऋष्यश्रृंग, भरद्वाज, देवल तथा जैगीषव्य आदि ऋषियों ने सिद्धि पाई थी। इस कवच को सर्वप्रथम रासरासेश्वर श्रीकृष्ण ने गोलोक धाम के वृंदावन नामक अरण्य में रासोत्सव के समय रासमंडल के वृंदावन नामक अरण्य में रासोत्सव के समय रासमंडल में ब्रह्माजी से कहा था।

तत्पश्चात ब्रह्माजी ने गंधमादन पर्वतपर भृगुमुनि को इसे दिया था। भगवती सरस्वती की उपासना (काली के रूप में) करके ही कवि कुलगुरु कालिदास ने ख्याति पाई। गोस्वामी जी कहते हैं कि देवी गंगा और सरस्वती दोनों एक समान ही पवित्रकारिणी हैं। एक पापहारिणी और एक अविवेक हारिणी हैं-

पुनि बंदउं सारद सुरसरिता। जुगल पुनीत मनोहर चरिता।
मज्जन पान पाप हर एका। कहत सुनत एक हर अबिबेका।

भगवती सरस्वती विद्या की अधिष्ठातृ देवी हैं और विद्या को सभी धनों में प्रधान धन कहा गया है। विद्या से ही अमृतपान किया जा सकता है। विद्या और बुद्धि की अधिष्ठात्‌ देवी सरस्वती की महिमा अपार है। देवी सरस्वती के द्वादश नाम हैं। जिनकी तीनों संध्याओं में इनका पाठ करने से भगवती सरस्वती उस मनुष्य की जिह्वा पर विराजमान हो जाती हैं।

गणतंत्र दिवस सैन्य परेड की चित्रमय झलकियां

63वें गणतंत्र दिवअर्धसैनिक बलों और अन्य असैन्य बलों मसलन सीमा सुरक्षा बल, असम राइफल्स, तटरक्षक बल, केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस, केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, सशस्त्र सीमा बल, रेलवे सुरक्षा बल, दिल्ली पुलिस, राष्ट्रीय कैडेट कोर और राष्ट्रीय सेवा योजना के दस्तों ने भी मार्च पास्ट में हिस्सा लिया।


नौसेना के दस्ते में लेफ्टिनेंट मणिकंदन के. के नेतृत्व में 148 जवानों और वायुसेना के दस्ते में फ्लाइट लेफ्टिनेंट स्नेहा शेखावटे के नेतृत्व में 144 अन्य जवानों ने राष्ट्रपति को सलामी दी।

खूबसूरत ऋतु वसंत की पवन द‍ीवानी

फूलों की खुशबू के बीच ठंड की हल्की-सी सुरसुरी छोड़ती हवा... दीवाना-सा हुआ जाता दुपट्टा और खुशियों की कोरस गाती पत्तियां... लीजिए जनाब... आ गया बौराने का मौसम। सिर पर मंडराते इम्तीहान के ख्याली हवाई जहाजों से होने वाली बौराहट... दिन में भी पलकों से आंख-मिचौली खेलती नींद से उपजी बौराहट... कोंपलों के साथ खिलती नर्म, मुलायम और प्यारी-सी छुअन से उपजी बौराहट... इस बौराहट में डूबी समूची प्रकृति। वसंत का यह समय सबको अपने रंग में रंग लेता है। आप चाहें या न चाहें हवा की छेड़छाड़ आपको भी एक अलग से नशे में तारी कर जाती है।

प्रकृति ने मनुष्य को उत्सव मनाने के लिए ढेर सारे मौके अपनी तरफ से भी दिए हैं। तेज बारिश में तर होकर पकौड़े खाना किसी उत्सव से कम नहीं और ठंड के दिनों में अलाव के आस-पास नाचने-गाने से बड़ा मजा कोई दूसरा नहीं। ठीक इसी तरह हल्की-सी ठंडक और गुनगुनी-सी धूप के कॉम्बिनेशन वाले मौसम यानी वसंत के दिनों को भी थोड़ी मस्ती और थोड़ी पूजा-पाठ के साथ मनाने का विधान है।

कलम आराधना का दिन
इस ऋतु में वसंत पंचमी के दिन को देवी सरस्वती की आराधना के दिन के रूप में भी मनाया जाता है। कई समाजों में इस दिन देवी सरस्वती की विधिवत पूजा कर उनसे ज्ञान का आलोक फैलाने की कामना की जाती है। खासतौर पर बंगाली समाज में यह दिन बेहद महत्वपूर्ण होता है। उस दिन देवी का पूजन कर, खिचुरी और पाएश (खिचड़ी और खीर) का प्रसाद बनाया और सबको खिलाया जाता है।

महिला-पुरुष तथा बच्चे सभी मिलकर सरस्वती देवी का आह्वान करते हैं, वहीं अन्य समाजों में लिखाई-पढ़ाई शुरू करने के लिहाज से भी इस दिन को शुभ माना जाता है और छोटे बच्चे को प्रथम बार अक्षर ज्ञान दिया जाता है। साहित्य तथा लेखन से जुड़े लोग भी इस दिन देवी सरस्वती की आराधना करते हैं।

रंग वसंत के
यूं तो मुख्यतौर पर पीला रंग इस मौसम से खास जुड़ाव रखता है, लेकिन उसके साथ मिलकर नारंगी, गुलाबी, लाल और अन्य रंग भी चारों ओर छा जाते हैं। यानी पीले और लाल रंग के कई शेड इस मौसम को और भी सुंदर बना देते हैं। पीले रंग के परिधान न केवल पूजा-पाठ की दृष्टि से पवित्र तथा शुभ रंगों में शुमार होते हैं, बल्कि मौसम के लिहाज से भी ये प्रकृति में घुल- मिल जाते हैं। पीले सरसों के फूलों से लदे खेत किसको नहीं मोहते भला? इसलिए वसंत रंगों से भरी ऋतु भी है, जिसके आगमन के साथ ही प्रकृति भी मुक्त हस्त से रंगों की छटा बिखेर देती है।

गीत गाते फूल-पत्ते
यह मौसम प्रकृति के आनंदोत्सव से जुड़ा है। इसलिए आपको ढेर सारे तरह-तरह के रंग-बिरंगे फूल अपने आस-पास हंसते-खिलखिलाते, आनंद मनाते दिखाई देंगे। पेड़ों पर खुशी, लय के साथ लहराती पत्तियां नए गीत गाती नजर आएंगी। हवाओं में एक अलग ही खुशबू तैरने लगेगी, जिसका असर आपके दिल-दिमाग पर छा जाएगा। शायद इसलिए ही इस मौसम का प्रेम प्रतीक के रूप में भी बखान किया जाता है।

आप भी मनाइए आनंद
जब आपके आस-पास जीवन के सारे रंग बिखरे पड़े हों और खुद प्रकृति भी उत्सव मनाने में मगन हो तो भला आप इस लहर से अछूते कैसे रह सकते हैं। शामिल हो जाइए फूलों के कोरस में, हवाओं के नृत्य में और आध्यात्म के हवन में। गुनगुनाइए, अपनों के संग हंसी के पल ढूंढिए और शहर की भीड़-भाड़ से दूर एक दिन किसी खेत के पास जाकर बिता आइए।

इतना भी मुश्किल हो तो घर की खिड़की के नजदीक चाय का प्याला लेकर बैठिए और कुछ देर हरी पत्तियों और फूलों की मौन गपशप को सुनने का समय निकाल लीजिए। इसके अलावा छुट्टी के दिन परिवार के साथ लॉन में या घर के किसी भी हवादार हिस्से में बैठकर भी प्रकृति के तरानों का मजा लिया जा सकता है।

याद रखिए मौसम तो कुछ महीनों में बदल जाएंगे, लेकिन दिल में बसे ये छोटे-छोटे खुशियों के पल और सुनहरी यादें तमाम उम्र आपके साथ रहेंगी... एक अमिट और अनमोल धरोहर बनकर।

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