प्रकृति ने मनुष्य को उत्सव मनाने के लिए ढेर सारे मौके अपनी तरफ से भी दिए हैं। तेज बारिश में तर होकर पकौड़े खाना किसी उत्सव से कम नहीं और ठंड के दिनों में अलाव के आस-पास नाचने-गाने से बड़ा मजा कोई दूसरा नहीं। ठीक इसी तरह हल्की-सी ठंडक और गुनगुनी-सी धूप के कॉम्बिनेशन वाले मौसम यानी वसंत के दिनों को भी थोड़ी मस्ती और थोड़ी पूजा-पाठ के साथ मनाने का विधान है।
कलम आराधना का दिन
इस ऋतु में वसंत पंचमी के दिन को देवी सरस्वती की आराधना के दिन के रूप में भी मनाया जाता है। कई समाजों में इस दिन देवी सरस्वती की विधिवत पूजा कर उनसे ज्ञान का आलोक फैलाने की कामना की जाती है। खासतौर पर बंगाली समाज में यह दिन बेहद महत्वपूर्ण होता है। उस दिन देवी का पूजन कर, खिचुरी और पाएश (खिचड़ी और खीर) का प्रसाद बनाया और सबको खिलाया जाता है।
महिला-पुरुष तथा बच्चे सभी मिलकर सरस्वती देवी का आह्वान करते हैं, वहीं अन्य समाजों में लिखाई-पढ़ाई शुरू करने के लिहाज से भी इस दिन को शुभ माना जाता है और छोटे बच्चे को प्रथम बार अक्षर ज्ञान दिया जाता है। साहित्य तथा लेखन से जुड़े लोग भी इस दिन देवी सरस्वती की आराधना करते हैं।
यूं तो मुख्यतौर पर पीला रंग इस मौसम से खास जुड़ाव रखता है, लेकिन उसके साथ मिलकर नारंगी, गुलाबी, लाल और अन्य रंग भी चारों ओर छा जाते हैं। यानी पीले और लाल रंग के कई शेड इस मौसम को और भी सुंदर बना देते हैं। पीले रंग के परिधान न केवल पूजा-पाठ की दृष्टि से पवित्र तथा शुभ रंगों में शुमार होते हैं, बल्कि मौसम के लिहाज से भी ये प्रकृति में घुल- मिल जाते हैं। पीले सरसों के फूलों से लदे खेत किसको नहीं मोहते भला? इसलिए वसंत रंगों से भरी ऋतु भी है, जिसके आगमन के साथ ही प्रकृति भी मुक्त हस्त से रंगों की छटा बिखेर देती है।
गीत गाते फूल-पत्ते
यह मौसम प्रकृति के आनंदोत्सव से जुड़ा है। इसलिए आपको ढेर सारे तरह-तरह के रंग-बिरंगे फूल अपने आस-पास हंसते-खिलखिलाते, आनंद मनाते दिखाई देंगे। पेड़ों पर खुशी, लय के साथ लहराती पत्तियां नए गीत गाती नजर आएंगी। हवाओं में एक अलग ही खुशबू तैरने लगेगी, जिसका असर आपके दिल-दिमाग पर छा जाएगा। शायद इसलिए ही इस मौसम का प्रेम प्रतीक के रूप में भी बखान किया जाता है।
आप भी मनाइए आनंद
जब आपके आस-पास जीवन के सारे रंग बिखरे पड़े हों और खुद प्रकृति भी उत्सव मनाने में मगन हो तो भला आप इस लहर से अछूते कैसे रह सकते हैं। शामिल हो जाइए फूलों के कोरस में, हवाओं के नृत्य में और आध्यात्म के हवन में। गुनगुनाइए, अपनों के संग हंसी के पल ढूंढिए और शहर की भीड़-भाड़ से दूर एक दिन किसी खेत के पास जाकर बिता आइए।
इतना भी मुश्किल हो तो घर की खिड़की के नजदीक चाय का प्याला लेकर बैठिए और कुछ देर हरी पत्तियों और फूलों की मौन गपशप को सुनने का समय निकाल लीजिए। इसके अलावा छुट्टी के दिन परिवार के साथ लॉन में या घर के किसी भी हवादार हिस्से में बैठकर भी प्रकृति के तरानों का मजा लिया जा सकता है।
याद रखिए मौसम तो कुछ महीनों में बदल जाएंगे, लेकिन दिल में बसे ये छोटे-छोटे खुशियों के पल और सुनहरी यादें तमाम उम्र आपके साथ रहेंगी... एक अमिट और अनमोल धरोहर बनकर।
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