कसाब के लिए बनाई गई स्पेशल सेल पर 5.29 करोड़ रुपए खर्च हुए। कसाब की सुरक्षा के लिए तैनात भारत तिब्बत सीमा पुलिस की विशेष टुकड़ी पर 10.87 करोड़ रुपए खर्च हुए। कसाब के खाने-पीने पर 27,520 रुपए और ईलाज के लिए 26,953 रुपए खर्च किए गए।
कसाब पर चले लंबे ट्रायल के बाद स्पेशल कोर्ट ने उसे सजा-ए-मौत सुनाई है। लेकिन हाई कोर्ट ने इस फैसले पर 21 फरवरी 2011 को रोक लगाई थी। तब से अब तक कसाब भारतीय कानून व्यवस्था के दांव-पेंचों की खामियां उठाते हुए सरकारी मेहमान बना बैठा है। महाराष्ट्र सरकार उसके मुकदमें, खाने से लेकर ईलाज तक का खर्च उठा रही है।
ठीक इसी तरह 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हमले में साजिश रचने का दोषी ठहराए जाने के बाद 18 दिसंबर 2002 को दिल्ली की एक अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी। सत्र अदालत ने 20 अक्तूबर 2006 को अफजल को तिहाड़ जेल में फाँसी दिए जाने का दिन भी तय किया था लेकिन इसके बाद अफजल ने राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दाखिल की जिन्होंने याचिका को केन्द्रीय गृह मंत्रालय को भेज दिया था।
तब से अबतक अफजल गुरू भी सरकारी मेहमान बना हुआ है। आतंकवादियों को सजा सुनाए जाने पर भी उस पर अमल न होने से जनता का आक्रोश बढ़ता ही जा रहा है लेकिन लंबी न्यायिक प्रक्रिया के चलते इन मामलों से होती देरी से देश विरोधी तत्वों का हौसला बुलन्द होता जा रहा है।
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