Thursday, 6 October 2011

रासकल्स : फिल्म समीक्षा

बैनर : संजय दत्त प्रोडक्शन्स प्रा.लि., रुपाली ओम एंटरटेनमेंट प्रा.लि
निर्माता : संजय दत्त, संजय अहलूवालिया, विनय चौकसे
निर्देशक : डेविड धवन
संगीत : विशाल-शेखर
कलाकार : संजय दत्त, अजय देवगन, कंगना, अर्जुन रामपाल, लीसा हेडन, चंकी पांडे, सतीश कौशिक
सेंसर सर्टिफिकेट : यू/ए * 2 घंटे 8 मिनट * 15 रील
रेटिंग : 1.5/5

रासकल्स के गाने में एक लाइन है ‘गए गुजरे रासकल्स’ और यह बात फिल्म पर एकदम सटीक बैठती है। ऐसा लगता है कि इस फिल्म से जुड़े सारे लोग गए गुजरे हैं। फिल्म बेहद लाउड है और हर डिपार्टमेंट का काम खराब है। चाहे वो एक्टिंग हो, म्यूजिक हो या डायरेक्शन। डेविड धवन अपना मिडास टच खो बैठे हैं और रासकल्स में कॉमेडी के नाम पर बेहूदा हरकतें उन्होंने करवाई हैं।

संजय दत्त सौ प्रतिशत इसलिए फिल्म में हैं क्योंकि वे निर्माता हैं वरना वे इस रोल के लायक हैं ही नहीं। वे पचास पार हैं और बुढ़ा गए हैं। परदे पर वे अपने से उम्र में आधी कंगना के साथ चिपका-चिपकी करते हैं तो सीन बचकाना लगता है।

ये बात सही है कि सलमान या आमिर भी अपने से कहीं छोटी उम्र हीरोइन के साथ परदे पर रोमांस करते हैं, लेकिन वे अभी भी फिट हैं। उनमें ताजगी नजर आती हैं। ये बात संजू बाबा में नहीं है और वे फिल्म की बहुत ही कमजोर कड़ी साबित हुए हैं।

और भी कई कड़ियां कमजोर हैं। मसलन कहानी नामक कोई चीज फिल्म में नहीं है। दो छोटे-मोटे चोर एक पैसे वाली लड़की को पटाने में लगे हैं। लड़की के बारे में कुछ भी नहीं बताया गया है कि वह कौन है? कितनी अमीर है? जहां वह मिलती है कि फिल्म के दोनों हीरो उससे ऐसे चिपटते हैं जैसे गुड़ से मक्खी। फिल्म के 90 प्रतिशत हिस्से में यही सब चलता रहता है।


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ये सभी लोग बैंकॉक की सेवन स्टार होटल में रूके हुए हैं और वही पर डेविड ने पूरी फिल्म बना डाली है। होटल की लॉबी, स्विमिंग पुल, रूम, गार्डन कोई हिस्सा उन्होंने नहीं छोड़ा है। ढेर सारे हास्य दृश्यों को जोड़कर उन्होंने फिल्म तैयार कर दी है। इन दृश्यों में भी इतना दम नहीं है कि दर्शक कहानी की बात भूल जाएं।

युनूस सेजवाल का स्क्रीनप्ले बेहद घटिया है और सैकड़ों बार देखे हुए दृश्यों को उन्होंने फिर परोसा है। कुछ ही ऐसे दृश्य हैं जिन्हें देख मुस्कान आती है तो दूसरी ओर फूहड़ दृश्यों की संख्या ज्यादा है। एक प्रसंग में तो भूखे और गरीब बच्चों तक का मजाक बना डाला है।

फिल्म के क्लाइमैक्स में दर्शकों को चौंकाने की असफल कोशिश की गई है। संवादों के नाम पर संजय छैल ने घटिया तुकबंदी लिख दी है, जैसे भोसले के हौंसले ने दुश्मनों के घोसले तोड़ दिए या जिंदगी में मौत, फिल्मों में आइटम नंबर और ये एंथनी कभी भी टपक सकता है।

निर्देशक के रूप में डेविड धवन प्रभावित नहीं करते हैं। अधूरे मन से उन्होंने फिल्म पूरी की है। अजय देवगन ने अपना पूरा जोर लगाया है, लेकिन खराब स्क्रिप्ट की कमियों को वे नहीं ढंक पाए। संजय दत्त का अभिनय बेहद खराब है और उन्हें उम्र के मुताबिक रोल ही चुनना चाहिए। कुछ दृश्यों में वे विग के तो कुछ में बिना विग के नजर आएं।
कॉमेडी करना कंगना की बस की बात नहीं है ये बात एक बार फिर साबित हो गई। उनका मेकअप भी फिल्म में बेहद खराब था। छोटे-से रोल मे लीसा हेडन प्रभावित करती हैं। ‘शेक इट सैंया’ में वे सेक्सी नजर आईं।


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सतीश कौशिक, चंकी पांडे जैसे बासी चेहरों ने बोर करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। अनिल धवन फिल्म के निर्देशक के बड़े भाई हैं, इसलिए वे भी छोटे-से रोल में नजर आएं, लेकिन उनसे संवाद बोलते नहीं बन रहे थे। अर्जुन रामपाल ने अपना काम ठीक से किया है।

विशाल-शेखर द्वारा संगीतबद्ध गाने जब परदे पर आते हैं तो दर्शक उनका उपयोग ब्रेक के लिए करते हैं। तकनीकी रूप से फिल्म औसत है।

एक अच्छी हास्य फिल्म के लिए उम्दा सिचुएशन, एक्टर्स की टाइमिंग और चुटीले संवाद बेहद जरूरी है। अफसोस की बात ये है कि रासकल्स हर मामले में कमजोर है।

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