उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने नोएडा में 685 करोड़ रुपए की लागत से एक भव्य पार्क बनवाया है। मायावती के 'ड्रीम पार्क' कहलाने वाले इस विराट भीमराव अंबेडकर पार्क' में राष्ट्रीय दलित प्रेरणा स्थल एवं भीमराव अंबेडकर, कांशीराम और मायावती के ऊंची कांस्य की प्रतिमाएं हैं। माया का सपना तो साकार हो गया लेकिन नोएडा की बेशकीमती जमीन पर फैले इस हरे-भरे 'प्रेरणा स्थल' की संगमरमर की टाइलों और बसपा सुप्रीमों के चमचमाते कांस्य बुतों की चमक से पूर्वी उत्तरप्रदेश के लाखों गरीबों की परेशानी धुंधली पड़ गई लगती है।
नोएडा में 80 एकड़ में फैले इस पार्क का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है इसके केंद्र में स्थित दलित प्रेरणा स्थल जहां एक 39 मीटर ऊंचा स्तूप और चार छोटे स्तूप बनाए गए हैं। इस स्मारक को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में दलितों को अपनी तरफ बनाए रखने की योजना के तहत बनाया गया है।
स्मारक भले ही शानदार हो लेकिन शुरुआत से ही विवादों में घिरा रहा है। सबसे पहले पर्यावरणविदों ने पार्क के निर्माण के लिए भारी संख्या में काटे गए पेड़ों का विरोध करते हुए निर्माण के खिलाफ जनहित याचिका दाखिल की और सुप्रीम कोर्ट के आदेश से कई दिनों तक पार्क का निर्माण रुका भी रहा। कई लोगों व संगठनों ने इस निर्माण में खर्च हो रहे धन को अनावश्यक बताते हुए इसके विरोध में प्रदर्शन भी किए। लेकिन खुद को देवतुल्य बनाने की धुन पर सवार बसपा सुप्रीमों ने किसी की परवाह नहीं की।
विडंबना है कि धन और संसाधनो के कमी से उत्तरप्रदेश के पूर्वी जिले गोरखपुर में पिछले दो महीनों में मस्तिष्क ज्वर यानि जापानी इंसेफ्लाइटिस रोग से लगभग 500 व्यक्ति अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं उसी प्रदेश की प्रमुख महज एक पार्क पर करोड़ो फूंक खुद का नाम इतिहास में दर्ज करना चाहती है। 'दलितों की मसीहा' मायावती इस समय मूर्तियां पर करोड़ो रुपए उड़ाने के बजाए गोरखपुर और उप्र के लाखों गरीबों की जान बचाकर जरूर इतिहास में अपना नाम दर्ज कर सकती थी लेकिन...
नोएडा में 80 एकड़ में फैले इस पार्क का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है इसके केंद्र में स्थित दलित प्रेरणा स्थल जहां एक 39 मीटर ऊंचा स्तूप और चार छोटे स्तूप बनाए गए हैं। इस स्मारक को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में दलितों को अपनी तरफ बनाए रखने की योजना के तहत बनाया गया है।
स्मारक भले ही शानदार हो लेकिन शुरुआत से ही विवादों में घिरा रहा है। सबसे पहले पर्यावरणविदों ने पार्क के निर्माण के लिए भारी संख्या में काटे गए पेड़ों का विरोध करते हुए निर्माण के खिलाफ जनहित याचिका दाखिल की और सुप्रीम कोर्ट के आदेश से कई दिनों तक पार्क का निर्माण रुका भी रहा। कई लोगों व संगठनों ने इस निर्माण में खर्च हो रहे धन को अनावश्यक बताते हुए इसके विरोध में प्रदर्शन भी किए। लेकिन खुद को देवतुल्य बनाने की धुन पर सवार बसपा सुप्रीमों ने किसी की परवाह नहीं की।
विडंबना है कि धन और संसाधनो के कमी से उत्तरप्रदेश के पूर्वी जिले गोरखपुर में पिछले दो महीनों में मस्तिष्क ज्वर यानि जापानी इंसेफ्लाइटिस रोग से लगभग 500 व्यक्ति अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं उसी प्रदेश की प्रमुख महज एक पार्क पर करोड़ो फूंक खुद का नाम इतिहास में दर्ज करना चाहती है। 'दलितों की मसीहा' मायावती इस समय मूर्तियां पर करोड़ो रुपए उड़ाने के बजाए गोरखपुर और उप्र के लाखों गरीबों की जान बचाकर जरूर इतिहास में अपना नाम दर्ज कर सकती थी लेकिन...






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